*परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रसायनी बाबा जी की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर विभिन्न गुरूकुलों में विशाल भंडारे का किया आयोजन*

*रसायनी बाबा जी की दूसरी पुण्यतिथि पर विशेष पूजा-अर्चना*

*☘️गुरूकुलों के माध्यम से संस्कृति के साथ – साथ प्रकृति व संतति के संरक्षण का संदेेश*

ऋषिकेश, 25 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रसायनी बाबा जी की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर विभिन्न गुरूकुलों यथा श्री निःशुल्क गुरुकुल महाविद्यालय, अयोध्या धाम, परमार्थ गुरूकुल, ऋषिकेश, गुरूकुल उत्तरकाशी, गुरूकुल दिल्ली, गुरूकुल बरकोट, गुरूकुल कोटद्वार में विशाल भंडारे का आयोजन किया। इस अवसर पर स्वामी जी ने रसायनी बाबा जी के जीवन, उनका आध्यात्मिक संस्कृति के प्रति अद्भुत लगाव और प्रकृति प्रेम के विषय में जानकारी देते हुये उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।

परमार्थ निकेतन द्वारा विभिन्न स्थानों पर आयोजित भंडारे में गुरूकुल के विद्यार्थियों व हजारों लोगों ने सहभाग किया और रसायनी बाबा जी के जीवन और उनके संदेश को स्मरण किया।

रसायनी बाबा जी प्रकृति को समर्पित जीवन जीने वाले महान संत थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन को मानवता की सेवा और आध्यात्मिक जागरूकता हेतु समर्पित कर दिया। बाबा जी ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि सच्ची भक्ति और सेवा का मार्ग ही ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है। रसायनी बाबा जी ने दिल्ली में रहकर आध्यात्मिक संस्कृति को समाज में पुनसर््थापित करने का कार्य किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि सच्ची आध्यात्मिकता का अर्थ केवल पूजा-पाठ ही नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू और हर कार्य में ईमानदारी, करुणा और सेवा का पालन करना है। बाबा जी ने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि आध्यात्मिकता का वास्तविक अर्थ मानवता की सेवा में निहित है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने हाथों से श्री निःशुल्क गुरुकुल महाविद्यालय के विद्यार्थियों को भोजन परोसते हुये कहा कि गुरूकुल परम्परा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। आप सभी यहां पर रहकर न केवल शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करेंगे बल्कि जीवन के हर पहलू में नैतिकता और अनुशासन का पालन करने की शिक्षा भी प्राप्त करेंगे।

स्वामी जी ने बताया कि परमार्थ निकेतन द्वारा देश के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न गुरूकुलों की स्थापना जा रही है तथा ऋषियों द्वारा स्थापित गुरूकुल परम्परा को वर्तमान समय में पुनर्जीवित करने का कार्य किया जा रहा है। जहां विद्यार्थियों को आध्यात्मिक, नैतिक और आधुनिक शिक्षा दी जा सके। साथ ही विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास के साथ उन्हें नैतिक मूल्यों से युक्त अनुशासन, और आत्मनिर्भर बनाने पर भी जोर दिया जा रहा है।

स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में भी गुरूकुलों के माध्यम से गुरु-शिष्य परम्परा उसी स्वरूप में जीवंत व जागृत है। साथ ही गुरूकुलों को समग्र शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है इसलिये इन गुरूकुलों में शास्त्रों के साथ भाषा, विज्ञान, गणित, कला, खेल, कम्प्यूटर और योग जैसी विभिन्न विधाओं में शिक्षा दी जा रही हंै ताकि समग्र शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास हो सकें।

स्वामी जी ने बताया कि इस मानसून में सभी गुरूकुलों में जाकर वहां के विद्यार्थियों को गुरूकुल प्रणाली के साथ प्राकृतिक वातावरण और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने हेतु शिक्षित करने के लिये प्रत्येक गुरूकुल में पौधों का रोपण किया जा रहा है ताकि संस्कृति के साथ – साथ प्रकृति व संतति का भी संरक्षण किया जा सके।