ऋषिकेश। राष्ट्रऋषि, भारतीय संस्कृति के ज्योतिर्धर पूज्य मोरारी बापू परमार्थ निकेतन पधारे। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने वेदमंत्र, शंखध्वनि और पुष्पवर्षा कर पूज्य बापू का अभिनंदन किया।
राष्ट्रसंत पूज्य मोरारी बापू अपनी कथाओं के माध्यम से सनातन संस्कृति का मूल और मर्म बहुत ही प्रभावी ढंग से समझाते हैं। उनकी विद्वता, विनय, और संवेदनशीलता न केवल वर्तमान पीढ़ी, बल्कि भावी पीढ़ियों को भी प्रेरित करती रहेगी। उनकी कथाओं में धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों के गहरे अर्थ समाहित है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्रीराम कथा मर्मज्ञ पूज्य मोरारी बापू का जीवन सादगी, सेवा और समर्पण का प्रतीक है। उनके द्वारा सुनाई गई कथाओं में प्रेम, अहिंसा, और मानवता का संदेश समाहित है। उनकी विद्वता और संवेदनशीलता ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया है। उनकी सृजनशीलता और संस्कृति व संस्कारों के प्रति समर्पण ने समाज में एक नई दिशा प्रदान की है।
स्वामी जी ने पूज्य बापू के जीवन और उनके अद्वितीय योगदान के बारे में बताते हुये कहा कि बापू की वीतरागता, विनय और विद्वता युगों-युगों तक पूरी मानवता को प्रेरित करती रहेगी। वे हम सभी के प्रेरणास्रोत हंै, उनके द्वारा सुनाई गई कथाएँ समाज को न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध बनाती हैं। उनकी कथाओं के माध्यम से समाज में सद्भावना, प्रेम और करुणा का भाव जागृत होता है।
वीतराग संत मोरारी बापू के उपदेश न केवल धार्मिक ग्रंथों पर आधारित होते हैं, बल्कि उनमें जीवन के व्यावहारिक पहलुओं का भी समावेश होता है। उनके उपदेश हमें जीवन में सदैव सत्य और धर्म का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। पूज्य मोरारी बापू का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। उनके द्वारा कथाओं के माध्यम से बोए जा रहे संस्कारों के बीज वटवृक्ष बनकर सम्पूर्ण मानवता को युगों-युगों तक दिशा प्रदान करते रहेंगे।
पूज्य मोरारी बापू ने कहा कि उत्तराखंड से गंगा जी निरंतर प्रवाहित हो रही हैं वही दूसरी ओर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी गंगा आरती के माध्यम से वर्षों से दिव्यता की गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। पेड़, पौधे, पर्यावरण और नदियों के प्रति स्वामी जी की दृष्टि अद्भुत है। जब भी कोई नदियों की आरती हेतु मुझे आमंत्रित करता हैं तो सबसे पहले स्वामी जी का स्मरण होता है। भारत में अनेक संत व कथाकार हैं जो भीतरी पर्यावरण की शुद्धता के लिये कथा, सत्संग व भजन-कीर्तन करते हैं परन्तु बाहरी पर्यावरण को शुद्ध व स्वच्छ रखने के लिये धरतीपुत्र के रूप में स्वामी जी वर्षों से कार्य कर रहे हैं। अद्भुत सेवा है यह कि पेड़ लगे, जल का संरक्षण हो और परिवारों मंे संस्कृति व संस्कारों की गंगा प्रवाहित होती रहे।
पूज्य बापू और पूज्य स्वामी जी ने परमार्थ निकेतन प्रांगण में आंवला के पौधे का रोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।