*हिन्दी, भाषा ही नहीं हम भारतीयों के दिलों की घड़कन है**

*✨हिन्दी से जुड़ना अर्थात अपनी जड़ों से जुड़ना*

*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

 

ऋषिकेश, 14 सितंबर। आज हिन्दी दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हिन्दी न केवल भारत की राजभाषा है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न अंग है। हिन्दी भाषा का महत्व केवल सरकारी कामकाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे दिलों को भी जोड़ती है। हिन्दी भाषा में वह मिठास और अपनापन है जो दिलों को छू लेता है। यह भाषा हमारे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज के समय में हिन्दी भाषा का प्रयोग केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के कई अन्य देशों में भी हो रहा है। नेपाल, मॉरीशस, फिजी, और कई अन्य देशों में हिन्दी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

परमार्थ निकेतन में विश्व के कई देशों से पर्यटक व श्रद्धालु आते हैं, जो योग, ध्यान, भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने के साथ ही हिन्दी बोलने का भी अभ्यास करते हैं। पूरे विश्व में लोगों की रूचि हिन्दी, हिन्दू व हिन्दुस्तान में बढ़ रही है। हिन्दी भाषा का भविष्य उज्ज्वल है। हमें इसे संरक्षित करने और आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। परिवारों, स्कूलों और समाज में हिन्दी के सही प्रयोग को बढ़ावा देना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस भाषा की महत्ता को समझ सकें। आज का दिन हमें याद दिलाता है कि हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान है। यह दिलों को जोड़ने वाली भाषा है जो हमें एकता और अखंडता का संदेश देती है।

’’हिन्दी, भाषा ही नहीं हम भारतीयों के दिलों की घड़कन है।’’ हिन्दी, दिल की भाषा है और वह दिलों को जोड़ती है इसलिये हमें भी हिन्दी के साथ दिल से जुड़ना होगा और हर परिवार में हिन्दी को स्थान देना होगा। ज्यादा से ज्यादा हिन्दी बोले तथा भावी पीढ़ी को भी हिन्दी से जोडं़े। हम अपनी-अपनी मातृभाषा जरूर बोले परन्तु हिन्दी सब को आनी चाहिये इसके लिये भी प्रयास करना होगा।

भारत की महान, विशाल, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और विरासत को सहेजने में हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी भारतीय संस्कारों और संस्कृति से युक्त भाषा है। हिन्दी से जुड़ना अर्थात अपनी जड़ों से जुड़ना; अपने मूल्यों से जुड़ना और अपनी संस्कृति से जुड़ने से है। भारत में हिन्दी और संस्कृत का इतिहास बहुत पूराना है। हिन्दी, न केवल एक भाषा है बल्कि वह तो भारत की आत्मा है।

भारत जैसे विशाल और विविधताओं से युक्त राष्ट्र में हिन्दी न केवल संवाद स्थापित करने का एक माध्यम है बल्कि हिन्दी ने सदियों से हमारी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य को सहेज कर रखा है। भारत, बहुभाषी देश है यहां पर हर सौ से दो सौ किलोमीटर पर अलग-अलग भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं और प्रत्येक भाषा का अपना एक महत्व है परन्तु हिन्दी के विकास और प्रसार की अपार संभावनाएँ हैं बस जरूरत है तो हिन्दी भाषा को दिल से स्वीकार करने की।

हिन्दी भाषा सृजन की भाषा है और स्वयं को अभिव्यक्त करने का सबसे उत्कृष्ट माध्यम है। हिन्दी साहित्य और कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्ति के सर्वाेच्च शिखर तक पहुंचा जा सकता है। हिन्दी भाषा सभी को आपस में जोड़ने का सबसे सरल और श्रेष्ठ माध्यम है।

हिंदी भाषा की विकास यात्रा से तात्पर्य हम सभी की विकास यात्रा से है। वास्तव में हिंदी भाषा की विकास यात्रा सतत विकास की प्रक्रिया है। समाज और संस्कृति के विकास में हिन्दी भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिंदी जन-जन की भाषा है; हिंदी संपर्क भाषा है और हिन्दी ने जनसमुदाय को भावनात्मक, भावात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है।

हिंदी भाषा साहित्यिक भाषा है, इसे हृदय से स्वीकार करने के साथ मल्टीनेशनल कंपनियों के दैनिक कामकाज के लिये भी स्वीकार करना होगा और इस हेतु जागरूकता के लिए सेमिनारों, समारोहों और कार्यक्रमों का आयोजन करना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही हिंदी को नई सूचना-प्रौद्योगिकी के अनुसार ढालना जरूरी है। वास्तव में वर्तमान पीढ़ी को हिन्दी को खुले दिल से स्वीकारने की अत्यंत आवश्यकता है।

हिंदी, भारत की संपर्क भाषा है और निरन्तर विकसित और परिष्कृत भी हो रही है परन्तु अब जरूरत है तो हिन्दी को सम्मानजनक स्थान दिलाने की इसलिये उसे भारत के प्रत्येक घर और हर भारतीय के हृदय में स्थान देना होगा। आइए, हम सब मिलकर हिन्दी भाषा को और अधिक समृद्ध और सशक्त बनाएं।