देहरादून। शिक्षाविद डॉ वाचस्पति मैठाणी की 74वीं जयंती पर स्मृति मंच द्वारा “संस्कृत में खगोल विज्ञान का महत्व” विषय पर एक बेबीनार का आयोजन किया गया। जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने डॉ मैठाणी द्वारा स्थापित महाविद्यालय को उनके नाम पर रखने की मांग की। इस अवसर पर मुख्य अतिथि केंद्रीय राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान देवप्रयाग के निदेशक प्रो. पी. वी. बी. सुभ्रमण्यम ने कहा कि खगोल विज्ञान प्राचीन भारतीय सभ्यता, संस्कृत भाषा से और हमारे उपनिषद, वेद, पुराणों से है, आज हमारा भारत चांद्रमा पर तिरंगा लहरा रहा है वह हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा दिये गये ज्ञान पर ही है। इसी ज्ञान का आभास करते हुए डॉ मैठाणी ने संस्कृत भाषा के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया था। स्मृति मंच के संरक्षक पूर्व शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि डॉ मैठाणी एक विचारधारा है संस्कृत और संस्कृति के उत्थान के लिए उनके द्वारा किए गये कार्य चिरकाल तक याद रखे जायेंगे। आज उनके कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है तभी हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
अति विशिष्ठ अतिथि पतंजलि विश्विद्यालय के प्रति कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल ने कहा कि संस्कृत भाषा पढ़ने वाला दूसरों को जीने की कला सिखाता है। उन्होंने कहा कि उच्च कोटि के मनीषी डॉ मैठाणी के रक्त में और सांस में संस्कृत शिक्षा के प्रति जो भावना थी उसको स्मरण कर संस्कृत भाषा को सर्वाेच्च गौरव प्रदान करने के लिए हमको प्रयास करना चाहिए।
दिल्ली गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी अकादमी के सचिव डॉ जीत राम भट्ट ने कहा कि डॉ मैठाणी मैकाले की शिक्षा पद्धति के ख़िलाफ़ थे इसीलिए उन्होंने वैदिक शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत विद्यालय खोलने पर ज़ोर दिया। कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्कृत शिक्षा निदेशक डॉ. शिव प्रसाद ख़ाली ने कहा की संस्कृत शिक्षा विभाग डॉ मैठाणी के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। विशिष्ट अतिथि घनसाली के विधायक शक्ति लाल शाह ने कहा कि डॉ मैठाणी द्वारा खोले गये शिक्षण संस्थानों की हर संभव मदद के लिए मैं हर समय तैयार हूँ। पूर्व मंत्री लाखी राम जोशी ने कहा कि मैठाणी जी हमेशा उत्तराखण्ड की संस्कृति और संस्कृत भाषा के उन्न्यन के लिए चिंतित रहते थे।
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाजसेवी शंभू प्रसाद रतूड़ी ने राज्य सरकार से डॉ मैठाणी द्वारा स्थापित बालगंगा महाविद्यालय सेंदुल का नाम डॉ वाचस्पति मैठाणी के नाम पर रखने की मांग की जबकि डॉ नरेंद्र डंगवाल ने उनके सेंदुल गाँव में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की वकालत की। समाज सेवी हरिप्रिया तुरखिया ने कहा कि डॉ मैठाणी ने बालिकाओं में सुसंस्कार पैदा करने के लिए पहाड़ के दुर्गम क्षेत्र में अलग से बालिका स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय के साथ साथ अन्य महाविद्यालयों की भी स्थापना की जिसका लाभ उन बालिकाओं को मिल रहा है जो किसी कारणवश घर से दूर नहीं जा पाती हैं।
पूर्व अपर शिक्षा निदेशक कमला पंत ने कहा कि डॉ मैठाणी ने अपना जीवन शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं शैक्षणिक संस्थाओं को खोलने के लिए समर्पित कर दिया। इस अवसर पर जनकवि बेलीराम कंसवाल, डॉ गीता नौटियाल, कृपाल सिंह शीला ने डॉ मैठाणी पर स्वरचित कविता सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ आशाराम मैठाणी ने किया। इस अवसर पर विजय बडोनी, डॉ हरीश चंद्र गुरुरानी, डॉ संजू प्रसाद ध्यानी, जय शंकर नगवान, उम्मेद सिंह चौहान, कमलापति मैठाणी, आलोकपाति, कैलाशपति मैठाणी, श्रीमती कविता, नीलम थपलियाल, शीला, ममता, उन्नति, करुणापति मैठाणी आदि उपस्थित रहे।