ऋषिकेश, 17 जुलाई। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज विश्व अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर कहा कि दुनिया में ’न्याय ही सर्वाेपरि हैै और संविधान ही समाधान है। आईये हम सभी मिलकर एक ऐसी दुनिया का निर्माण करें जिसमें धरा, जल स्रोत, नदियां, पर्यावरण, प्राणी और सम्पूर्ण मानवता को न्याय मिले। कानून से बढ़कर कोई भी नहीं है इसलिये हम सभी एकजुट होकर प्राकृतिक अधिकारों को बढ़ावा दें और न्याय प्रणाली को मजबूत करने का संकल्प लें।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि विश्व में न्याय को स्थापित करने के लिए वैचारिक प्रदूषण और वाणी प्रदूषण पर ध्यान देने की जरूरत है। दुनिया में होने वाले नरसंहार, युद्ध, हिंसा, मानवता के खिलाफ होने वाले सभी गंभीर अपराध, प्रदूषण आदि का प्रमुख कारण है वैचारिक व वाणी प्रदूषण। अपराध पर प्रदूषण दोनों ही धरती पर बढ़ते जा रहे हैं और दोनों का ही उद्भव सबसे पहले विचारों में ही होता है। विचारों की शुद्धि के लिये जरूरी है हमारी संस्कृति व संस्कारों से जुड़ना; अपनी जड़ों से जुड़े रहना, शास्त्रों का अध्ययन, मनन व चिंतन करना, सत्संग व ध्यान करना और प्रकृति से जुड़े रहना।

स्वामी जी ने कहा कि न्याय एक सार्वभौमिक अधिकार है इसलिये यह सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए। सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण तक सभी की पहुँच होना चाहिये। इस धरती पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ, स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार है परन्तु जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण मानवता के सामने सबसे गंभीर खतरे हैं इसलिये हम सभी मिलकर एक ऐसे विश्व के निर्माण के लिए कार्य करें जहां सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके।

स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छ प्रकृति से माध्यम से ही स्वस्थ दुनिया का निर्माण सम्भव है। पृथ्वी पर प्रत्येक प्रजाति और जीवों का संतुलन बनाए रखने के लिये बढ़ते प्रदूषण पर रोक लगानी होगी। जैवविविधता प्रकृति में हर उस चीज का समर्थन करती है जो हमें जीवित रहने के लिये जरूरी है, जैसे- भोजन, स्वच्छ जल, दवा और आश्रय परन्तु प्रदूषण के कारण यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है। प्रदूषक हवा, जल और जमीन की गुणवत्ता को नुकसान पहंुचा रहे हैं।

स्वामी जी ने कहा कि हमारे साथ न्याय हो यह हमारा अधिकार है परन्तु प्रकृति, पर्यावरण व समाज का हमारे ऊपर ऋण हैं, प्रकृति को स्वच्छ रखकर हम उस ऋण को; उस कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। समाज का उद्देश्य किसी एक या कुछ लोगों का विकास नहीं है बल्कि सम्पूर्ण मानवता के समुचित विकास से हैं इसलिये हमें अपने अधिकार के साथ कर्तव्य पर भी विशेष ध्यान देना होगा तभी सभी के साथ न्याय हो सकता है।