*श्रीमद्भागवत कथा में अमृतवचनों की अमृत वर्षा*
*✨परमार्थ निकेतन माँ गंगा के पावन तट पर कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के श्रीमुख से अष्टोत्तरशत 108 – श्रीमद् भागवत कथा की ज्ञान गंगा हो रही प्रवाहित*
*संत, भारत के सांस्कृतिक हिमालय*
*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
ऋषिकेश, 24 जून। परमार्थ निकेतन में मलूकपीठाधीश्वर पूज्य श्री राजेंद्र दास जी महाराज का दिव्य आगमन हुआ।
परमार्थ निकेतन, माँ गंगा के पावन तट पर कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के श्रीमुख से हो रही अष्टोत्तरशत 108 – श्रीमद् भागवत कथा के दिव्य मंच से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और श्री राजेन्द्रदास जी महाराज ने दिव्य उद्बोधन दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, श्री राजेन्द्रदास जी और श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी ने माँ यमुना जी की अविरलता व निर्मलता के विषय में चर्चा करते हुये कहा कि माँ यमुना, वृन्दावन की आत्मा हैं। यमुना जी के बिना ब्रज की संस्कृति अधूरी हैं। जहां कृष्ण जी हैं, वहीं यमुना जी हैं।
स्वामी जी ने कहा कि यमुना जी के दोनों तटों को सुंदर व सुरम्य बनाने के लिये पौधों का रोपण करना होगा। यमुना जी की आध्यात्मिकता, आस्था के साथ जैव विविधता की विरासत को बनाये रखना भी अत्यंत आवश्यक है। ब्रज की संस्कृति पर्यावरण संरक्षण की संस्कृति है; ब्रज की संस्कृति नदियों के संरक्षण की है। भगवान श्री कृष्ण ने नदियों, गोवर्द्धन रूपी पर्वतों व पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत संदेश दिया हम सब ठाकुर जी की पूजा के साथ उनके द्वारा प्रदान किये संदेशों को भी आत्मासात करें तभी कथाओं की सार्थकता हैं।
स्वामी जी ने कहा कि नदियों के तटों पर ही हमारे तीर्थ हैं, संस्कृति हैं, हमारी आस्था हैं और सम्पूर्ण मानवता का जीवन नदियों की अविरलता व निर्मलता के कारण हैं इसलिये हमारे व्यवहार में छोटे-छोटे परिवर्तन करने होंगे ताकि नदियां जीवंत, जागृत व सदानीरा बनी रहे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत इसलिये महान नहीं है कि भारत के पास बड़ी-बड़ी इमारतें हैं; ताजमहल है; लाल किला है; कश्मीर की वादियाँ हैं, दिल्ली का कनॉट प्लेस व मुम्बई की चौपाटी हैं बल्कि भारत इसलिये महान है क्योंकि भारत के पास दिव्य भावनायें हैं। जीवन भवनों से नहीं बल्कि भावनाओं से महान बनाता है। जीवन महान साधनों को एकत्र करने से नहीं बल्कि साधना से महान बनता है और जीवन उच्च आचरण से महान बनता है। भारत ने शरणागति का मार्ग दिखाया है। संत, भारत के सांस्कृतिक हिमालय हैं, भारत के ज्योतिर्धर हैं।
मलूकपीठाधीश्वर पूज्य श्री राजेंद्र दास जी ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी आरती की क्रांति के जनक है। आपने आरती के माध्यम से पूरे विश्व में पर्यावरण संरक्षण का अलख जगाया है। संत, अपनी ऊर्जा का विनियोग पूरे विश्व के लिये करते हैं। अब संत, साधक, कथाकार, श्रोता व श्रद्धालु सभी को मिलकर हमारी नदियों, संस्कृति, संस्कार और हमारी विरासतों के संरक्षण के लिये कार्य करना होगा।
श्रीदेवकीनन्दन ठाकुर जी ने पूज्य संतों का कथा के दिव्य मंच से अभिनन्दन किया।