*शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का संदेश*
*✨सभी को मिलकर शांति एवं मानवता के लिये कार्य करना होगा*
*भारत ने सदैव ही सहिष्णुता को बढ़ावा दिया*
*भारत “वसुधैव कुटुंबकम” के मंत्रों को गाता ही नहीं जीता भी है*
*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
ऋषिकेश, 6 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज पश्चिम की धरती से दिये अपने संदेश में कहा कि वैश्विक शांति संपूर्ण विश्व की आवश्यकता है। यह एक दिन में संभव नहीं हो सकती परन्तु एक विचार या एक निर्णय जो शान्ति हमारे चारों ओर व्याप्त है उसे अशान्ति में बदल सकता है इसलिये संपूर्ण विश्व को अपने-अपने निजी स्वार्थों का त्याग कर मानवता के लिये कार्य करना होगा।
वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व को चिंतन करने की आवश्यकता है कि कैसे आपस में शांति एवं भाईचारे को कायम किया जाए। हमारे आसपास अगर आग लगी हो तो उसकी ज्वाला व तपन किसी न किसी रूप से हमें भी प्रभावित करेंगी इसलिये सभी को मिलकर शांति एवं मानवता के लिये कार्य करना होगा। अगर कोई राष्ट्र अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है तो उसका असर केवल उस राष्ट्र या वहां के निवासियों पर नहीं बल्कि पूरे वैश्विक समाज पर पड़ता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वैश्विक शांति स्थापित करने में भारत सदैव अग्रणी रहा है। प्राचीन काल से ही शांति एवं सद्भाव भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं रही हैं। भारत “वसुधैव कुटुंबकम” के मंत्रों को गाता ही नहीं जीता भी है। भारत ने सदैव ही सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और बाहर से आयी संस्कृतियों को भी अपने में समाहित कर उन्हें गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया है।
स्वामी जी ने कहा कि शान्ति के अभाव में पूरी दुनिया एक अदृश्य युद्धकालीन परिस्थितियों का सामना कर रही हैं। ऐसे में सभी को मिलकर शांति एवं भाईचारे, अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करने तथा शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिये कार्य करना होगा। साथ ही सभी को वैश्विक शांति स्थापित करने की दिशा में प्रयास करने होंगे।
आज जो हम संघर्ष देख रहे हैं, लोग पलायन कर रहे हैं, नस्ल-आधारित भेदभाव हो रहा है, अभद्र भाषा, व्यवहार और हिंसा देख रहे हैं यह सब वैश्विक शान्ति के लिये खतरा है इससे वैश्विक समाज के शान्तिपूर्ण ढांचों को तोड़ा जा सकता है।
आज विश्व के सभी देशों को समानता और मानवाधिकारों की रक्षा के समर्थन के लिये कार्य करना होगा ताकि लोगों को उनके मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों से वंचित न होना पड़े तथा अस्थिरता और अशान्ति के दौर से न गुजर पड़े। सामाजिक मूल्यों के हनन व अभाव में हम वैश्विक स्तर पर एक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसी परिस्थितियों में अहिंसा का पालन करते हुये सुलह के साथ जनसमुदाय की मुक्ति पर ध्यान केंद्रित करना होगा।